बिखरी ये शाम, तन्हाईयो कि रात
मधिम मधिम बरके, कहे ं जुगनु सारी बात
पेड़ो पे सना हूं, जाने मैं कहां हूं।।
जिस डाल पे बैठू तो सारा ज़ग मेरा
इस घनघोर संनाटे पर मेरा ही बसेरा
ओस के बूद से सना हूं, जाने मैं कहां हूं।।
फर फर कर के नाचू, बजाऐ झिंगुर ढोल
गाऐ पपीहा पिहू पिहू, वरण मन खोल
कहानी ही सुना हूं, जाने मैं कहां हूं।।
झिंगुर के झनझनाहटो में, हवा के सनसनाहटो में
पेड़ो के सरसराहटो में, पक्षियों के चहचहाटो में
देखु जहां वहां हूं, पर जाने मैं कहा हूं।।
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